जिस हाथ पकड़ कर लांघी थी
दहलीज़ जवानी की
जब हाथ छूट जायेगा वो
कैसा होगा वो सूनापन

जिन आखों से सपने देखे
जिन आखों में रौशन थे हम
वो आँखें जो बंद हो जाएँ
कैसे व्याकुल फिर हो ना मन

वादे थे जीवन भर के जो
क़स्में थी सुख-दुःख बाटेंगे
बीच राह वो छोड़ चलें
फिर क्यूँकर काटेंगे जीवन

जिस नीड़ को जोड़ा था हमने
तिनका-तिनका देकर तन-मन
जब साथी ही उड़ जायेगा
कैसा होगा अपना जीवन